वेदना!!!!!!!

खुद को समझने कि एक अकुलाहट, जैसे जीवन को विरासत में मिली है। पर ये इतना आसन भी नहीं है। आसन क्यों नहीं है? ये भी एक प्रश्न है।
सबसे बड़ा कारण शायद ये है कि, हम जीवन के दौड़ में खुद से दूर निकल आते है। जहाँ हमारे चारो तरफ कि दुनिया एक मृग मरीचिका है, जिसका आकर्षण हमें खुद से दूर ले जाता है। खुद से दूर, खुद की वास्तविकता से परे।
दूसरा कारण, हम अकेले होने से डरते है, हम भीड़ में रहना पसंद करते है। ये डर इस लिए भी कि हमें अकेले में अपने से जो साक्षात्कार होता है, हम अपने उस स्वरुप से मिलना नहीं चाहते।
हमें अपनी मनोवेदना को समझने के लिए अपने मनोविज्ञान को समझना होगा। खुद अपने मनोविज्ञान को समझना कठिन है, फिर प्रश्न वही होगा कठिन क्यों है ?
क्यों कि जीवन कि दौड़ सदैव बहार को रही है, खुद को देखने और समझने का वक़्त कब दिया। यदि समाज रुपी आईने में अपना प्रतिबिम्ब हम देख सकें तो अपने मनो विज्ञान को समझ सकते है।
आत्मअवलोकन, आत्मनिरीक्षण (Self observation) कठिन है, कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है, कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है।

20 thoughts on “वेदना!!!!!!!

  1. हमें अपनी मनोवेदना को समझने के लिए अपने मनोविज्ञान को समझना होगा। खुद अपने मनोविज्ञान को समझना कठिन है, फिर प्रश्न वही होगा कठिन क्यों है ?

    सबसे कठिन काम है अपने को समझना….सारा समय हमारी दृष्टि दूसरे पर ही रहती है…..अपने लिए हम काफी उदार हो जाते हैं किसी भी विश्लेषण में और दूसरों के प्रति……???

  2. खुद को समझ पाने के लिए
    खुद के क़रीब आना बहुत ज़रूरी है ….
    आत्मनिरीक्षण कठिन है,

    कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है,

    कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है…

    बहुत प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक आलेख !

  3. आत्मअवलोकन, आत्मनिरीक्षण (Self observation) कठिन है, कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है, कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है।

    very true !!

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