खुद को समझने कि एक अकुलाहट, जैसे जीवन को विरासत में मिली है। पर ये इतना आसन भी नहीं है। आसन क्यों नहीं है? ये भी एक प्रश्न है।
सबसे बड़ा कारण शायद ये है कि, हम जीवन के दौड़ में खुद से दूर निकल आते है। जहाँ हमारे चारो तरफ कि दुनिया एक मृग मरीचिका है, जिसका आकर्षण हमें खुद से दूर ले जाता है। खुद से दूर, खुद की वास्तविकता से परे।
दूसरा कारण, हम अकेले होने से डरते है, हम भीड़ में रहना पसंद करते है। ये डर इस लिए भी कि हमें अकेले में अपने से जो साक्षात्कार होता है, हम अपने उस स्वरुप से मिलना नहीं चाहते।
हमें अपनी मनोवेदना को समझने के लिए अपने मनोविज्ञान को समझना होगा। खुद अपने मनोविज्ञान को समझना कठिन है, फिर प्रश्न वही होगा कठिन क्यों है ?
क्यों कि जीवन कि दौड़ सदैव बहार को रही है, खुद को देखने और समझने का वक़्त कब दिया। यदि समाज रुपी आईने में अपना प्रतिबिम्ब हम देख सकें तो अपने मनो विज्ञान को समझ सकते है।
आत्मअवलोकन, आत्मनिरीक्षण (Self observation) कठिन है, कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है, कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है।
बहुत अच्छा लेख … सही है हम खुद को जीवन भर अनदेखा करते हैं …हमेशा दुसरो के चश्मे से खुद को देखते हैं….
शुभकामनाये
जी धन्यवाद…..
हमें अपनी मनोवेदना को समझने के लिए अपने मनोविज्ञान को समझना होगा। खुद अपने मनोविज्ञान को समझना कठिन है, फिर प्रश्न वही होगा कठिन क्यों है ?
सबसे कठिन काम है अपने को समझना….सारा समय हमारी दृष्टि दूसरे पर ही रहती है…..अपने लिए हम काफी उदार हो जाते हैं किसी भी विश्लेषण में और दूसरों के प्रति……???
अपने प्रति ये उदारता ही हमारे प्रतिकूल होती है.
सटीक लेख …..फिर भी इंसान भीड़ की चाह में …खुद में बहुत अकेला है …
जी धन्यवाद…..
बहुत बढ़िया और सटीक लिखा है आपने ! बेहतरीन प्रस्तुती !
सार्थक विश्लेषण!! बधाई..
जी धन्यवाद
खुद को समझ पाने के लिए
खुद के क़रीब आना बहुत ज़रूरी है ….
आत्मनिरीक्षण कठिन है,
कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है,
कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है…
बहुत प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक आलेख !
dkmuflis.blogspot.com
खुद को जाना जा सकता है, बस, गंभीरता से प्रयास करना होगा।….. और यही नहीं हो पाता !
बहुत अच्छा लेख …
Please see
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%AE-%E0%A4%A6-%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%B8-%E0%A4%9C-%E0%A4%A6-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%AE-%E0%A4%A7-%E0%A4%A8#ad098f218-0511-4328-9b81-64da747e58a9
sateek vishleshan …insan sari jindagi khud ko hi talashta rahta hai…
आत्मअवलोकन, आत्मनिरीक्षण (Self observation) कठिन है, कठिन इस लिए नहीं कि क्रियात्मक जटिलता है, कठिन इस लिए क्यों कि खुद को उस रूप में देखना स्वीकार्य नहीं है।
very true !!
बहुत ही गहन विश्लेषण के साथ सुंदर प्रस्तुति.
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शहर कब्बो रास न आईल
गहन चिंतन ..सही है स्वयं को उस रूप में देखना शायद कठिन ही होता है ..
sarthak chintanparak lekh.
प्रश्न और उत्तरों के जरिये इस पोस्ट की कशमकश को समझा जा सकता है …..
शुभकामनायें आपको !
जन. कृष्णमूर्ति बीसवीं सदी के उन व्यक्तित्व मे से एक है, जो प्रश्नोत्तर के माध्यम से आत्मनिरीक्षण की बात करते हैं .
http://www.jkrishnamurti.org/index.php
उम्मीद है इन्हे सुन कर आपको अच्छा लगेगा.